सब सूतत हें उन जागत हें,
जाड़ - घाम मा मुचमुचावत हें
तज दाई ददा भईया भउजी,
जाके जंग मा जान गँवावत हें
कोनों किसिम के बिपदा के घड़ी,
कोनों गाँव गली कभू आवत हे
नदिया – नरवा, डबरी - डोंगरी ,
कर पार उहाँ
अगुवावत हें.
बम, बारुद, बंदूक संग खेलैं ,
बइरी दुस्मन ला खेदारत हें
बीर जंग मा खेलैं होरी असली,
देखौ लाल लहू मा नहावत हें
गोली छाती मा झेलत हें हँसके,
दूध के करजा ला चुकावत हें
मोर बीर बहादुर भारत के ,
जय हिंद के गीत सुनावत हें
(शब्दार्थ : सूतत = सो रहे , उन = वे , जागत = जाग रहे , जाड़ घाम = ठंड धूप , मुचमुचावत हें = मंद मंद
मुस्कुरा रहे हैं , दाई ददा = माता पिता, कोनों किसिम के = किसी प्रकार की ,नरवा = नाला , डोंगरी = पहाड़ी , उहाँ = वहाँ , अगुवावत = आगे आना ,बइरी = बैरी ,खेदारत = भगाना )
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर, जबलपुर (म.प्र.)
गोली छाती मा झेलत हें हँसके,
ReplyDeleteदूध के करजा ला चुकावत हें
मोर बीर बहादुर भारत के ,
जय हिंद के गीत सुनावत हें
बहुत सुग्घड़ हवे आज़ादी के तिहार के हार्दिक बधाई
Jai hind....khubsurat rachna...
ReplyDeleteजय हिंद...गजब सुघ्घर गीत.
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