बाँधा तरिया के खाल्हे मा
रहिथय देवर हमार
टीना ,लोहा ,प्लास्टिक के
करे वो हा व्यापार.
पढ़े के दिन मा पढ़े नहीं
स्कूल ले रहे भगाय
खार बगीचा मा किंजरे
अउ आमा , अमली गिराय.
स्कूल तीर के डबरी मा
मेचका – मछरी धरे बर जाय
बोरिंग ला गजब टेंड़ – टेंड़ के
कुकुर – पिला ला नहवाय.
फुरफुंदी के पूँछी मा
बाँधे रहे पतंग कस डोर
एती – ओती उड़ावय ओला
किंजरे गली अउ खोर.
बिल्लस ,बाँटी ,भौंरा खेले
रेस-टीप खेलवाय
जौन गड़ौला खेले ओखर संग
लंगड़ी ओला कूदवाय.
पढ़े लिखे कहूँ रहितिस तब
मिल जातिस बने कुछू काम
काम कुछू सुधरे नहीं
होगे ओखर नींद हराम.
निकले रहे बिहिनिया ले
हाथ ठेला धर के जाये
“टीना , लोहा , प्लास्टिक
शीशी बाटल” –चिल्लाये.
कबाड़ समान अउ रद्दी कागज
बेचे अउ बिसाय
घर के दुवारी मा लानय
अउ ढेरी ओखर लगाय.
अतका काम ला करके भी
चले नहीं ओखर गुजारा
मूड़ ला धर के बइठ जावय
का करे वो बिचारा.
बचपन के गलती ओला
अभिन समझ मा आय रहे
अपढ़ रहे के कारन से
गरीबी ओला भरमाय रहे.
अपन लइका ला मैं ह पढ़ाहूँ
कसम अइसन वो खाये रहे
ज्ञान के रद्दा देखाये खातिर
स्कूल मा भरती कराये रहे.
पढ़ो – बढ़ो अभियान
हमर छत्तीसगढ़ के शान
बेटा – बेटी पढ़िही हमर
बन जाही देस महान.
- श्रीमती सपना निगम
आदित्य नगर , दुर्ग
(छत्तीसगढ़)
बहुत सुन्दर रचना| धन्यवाद|
ReplyDeleteइ गीत तो बड़ा मजेदार वा हमका नीक लगा निगम जी बहुत सुंदर गीत रचा है आपने, बहुत बहुत बधाई!!!!
ReplyDeleteuma shanker mishra to me
ReplyDeleteshow details May 31 (1 day ago)
साक्षरता मिसन में यह कविता बहुत हि विशेष योगदान प्रदान करने वाली है
गीत में छत्तिसगढ़ी बचपन की मद मस्त मनमोहक भावनाओं
का दृश्यक वर्णन है| शिक्षाप्रद है,आपका प्रयास सराहनीय है आपके निः
स्वार्थ व्यक्तिगत यागदान राज्य को जरुर लाभ पहुँचायेगा ...धन्यवाद
mail by uma shankar mishra
बहुत सुंदर सन्देश लिए है गीत ......
ReplyDeleteबहुत ख़ूबसूरत और शानदार रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!
ReplyDeleteबचपन के गलती ओला
ReplyDeleteअभिन समझ मा आय रहे
अपढ़ रहे के कारन से
गरीबी ओला भरमाय रहे....
Wonderful creation Sapna ji.
.
बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना ! हार्दिक शुभकामनायें !
ReplyDeleteदेवार ह देवर छप गए हे का.
ReplyDeleteदेवर शब्द सही छपे हे. अनपढ़ 'देवर बाबू ' के जागरण गीत ला सपना जी हा अपन अंदाज मा लिखे हे.
ReplyDeleteसपना जी की यह कविता भाषा की वजह से शब्द डर शब्द तो नहीं समझ पायी ... लेकिन वो जो सन्देश देना चाह रही हैं वो ज़रूर समझ आ गया है ... सार्थक सन्देश देती रचना है .. शिक्षा ही हमें आगे बढा सकती है ...
ReplyDeleteसपना जी मेरे ब्लॉग पर आयीं उनको हार्दिक धन्यवाद
कृपया टिप्पणी बॉक्स से वर्ड वेरिफिकेशन हटा लें ...टिप्पणीकर्ता को सरलता होगी ...
वर्ड वेरिफिकेशन हटाने के लिए
डैशबोर्ड > सेटिंग्स > कमेंट्स > वर्ड वेरिफिकेशन को नो करें ..सेव करें ..बस हो गया .
कविता का सार तो समझ में आ गया पर भाषा में थोड़ी सी मुश्किल हुयी.हाँ वैसे पढ़ लिख कर तो देश महान हो रहा है तभी तो पढ़ लिख कर भी लोग बेकार बैठे हैं य आत्म हत्या कर रहे हैं
ReplyDeleteसिरतोन बात ये, पढ़ई लिखई नई करईया मन के इही हाल होथे, इमन अपन मूड पिरवाए तो होथेंच अपन पूरा परिवार ला दुख मा डारथें। बने होईस जउन समें म चेत चढ़ गे अउ अपन लईका मन ला पढाये के गियान आगे। बहुत सुन्दर ढ़ग ले साक्छरता उपर अभिब्यक्ति.
ReplyDeleteसुंदर सन्देशयुक्त गीत के लिए श्रीमती सपना निगम जी को
ReplyDeleteहार्दिक बधाई ......