Saturday, October 3, 2020

"चंदैनी-गोंदा की अदृश्य शक्ति": श्रीमती राधा देवी देशमुख


"चंदैनी-गोंदा की अदृश्य शक्ति": श्रीमती राधा देवी देशमुख की 40 वीं पुण्यतिथि पर श्रद्धा-सुमन

चंदैनी गोंदा का नाम लेते ही अनेक नाम याद आने लगते हैं। संस्थापक दाऊ रामचंद्र देशमुख, गीतकार लक्ष्मण मस्तुरिया, रविशंकर शुक्ल, संगीतकार खुमानलाल साव, सह-संगीतकार गिरिजा कुमार सिन्हा, बाँसुरी वादक संतोष टाँक, मोहरी वादक पंचराम देवदास, तबला वादक महेश ठाकुर, ढोलक वादक केदार यादव, मदन शर्मा आदि। गायक लक्ष्मण मस्तुरिया, रविशंकर शुक्ल, भैयालाल हेड़ाऊ, गायिका कविता वासनिक,अनुराग ठाकुर, साधना यादव, संगीता चौबे, मंजुला बेनर्जी, संतोष झाँझी आदि। कलाकार दाऊ रामचंद्र देशमुख, भैयालाल हेड़ाऊ, शिव कुमार दीपक, शैलजा ठाकुर आदि। उद्घोषक सुरेश देशमुख, प्रमोद यादव। साउंड सिस्टम स्वर संगम के बहादुर भैया। 36 गढ़ के 63 कलाकार कभी न कभी, किसी न किसी प्रसंग में याद आ ही जाते हैं। 

क्या चंदैनी-गोंदा की राधा देवी जी को आप जानते हैं ? वही राधा देवी जो चंदैनी गोंदा की अदृश्य शक्ति थीं। दाऊ रामचंद्र देशमुख जी द्वारा सृजित चंदैनी गोंदा के सभी कलाकार उन्हें अच्छी तरह से जानते हैं किंतु चंदैनी गोंदा के दर्शक या चंदैनी गोंदा के मधुर संगीत पर झूमने वाले इस नाम से अपरिचित ही होंगे क्योंकि राधा देवी जी की भूमिका कभी भी चंदैनी गोंदा के मंचों पर नहीं रही। पुनः यह प्रमाणित हो जाता है कि किसी पुरुष की सफलता में पीछे किसी न किसी नारी का हाथ अवश्य ही होता है। चाहे तुलसी-रत्नावली का युग हो, चाहे रामचंद्र देशमुख-राधा देवी का युग हो।

श्रीमती राधा देवी, चंदैनी गोंदा के एकमात्र संस्थापक और मालगुजार दाऊ रामचंद्र देशमुख जी की जीवन-संगिनी थीं। उनकी प्रेरणा थीं, उनकी प्रेयसी थीं। दोनों का शुभ विवाह सन 1936 में हुआ था। राधा देवी ग्राम पथरी निवासी मालगुजार, सुप्रसिद्ध राजनेता, महान समाज सेवी और पृथक् छत्तीसगढ़ राज्य के प्रथम स्वप्न-दृष्टा डॉ. खूबचंद बघेल  जी की सुपुत्री थीं। दाऊ रामचंद्र देशमुख के जीवन में  राधा देवी  का प्रवेश उनके लिए कल्पना, प्रसिद्धि, साधना और सम्मान के क्षितिजों की ओर ले जाने वाला सिद्ध हुआ।  वे राधा देवी के प्रति जिस भाव से आजीवन भरे रहे उसे देखकर आश्चर्य होता है। अपनी पत्नी को उन्होंने जीवन भर प्रेमिका की तरह चाहा। राधा देवी जी के निधन के पश्चात एक साक्षात्कार के दौरान दाऊ रामचंद्र देशमुख ने कहा था - "मेरी दिवंगत धर्मपत्नी, मेरी सबसे बड़ी सहायिका रही है। मुझे शुरू से ही उन्होंने ऐसा करते देखा था। चंदैनी गोंदा के कलाकार अनेक पार्टियों से आए थे,अपना-अपना संस्कार लेकर। अतः शुरू शुरू में स्तर बनाने और उसे आगे कायम रखने में भारी तकलीफों का सामना करना पड़ा। मैंने उनसे कहा कि चंदैनी गोंदा एक यज्ञ है और इसकी पवित्रता कायम रखना सबकी जिम्मेदारी है। मेरे अपने परिवार के लोगों ने भी इसे इसी भाव से लिया"।

"चंदैनी गोंदा" के लिए कलाकारों की खोज करने दाऊ जी अपनी कार से कई-कई दिनों तक छत्तीसगढ़ के अनेक गाँवों में भटकते रहते थे। इस जुनून के दौरान उनके परिवार, घर-द्वार और खेती-बाड़ी की देख-रेख की सम्पूर्ण जवाबदारी राधा देवी जी उठा लेती थीं। अलग-अलग स्थान से अलग-अलग स्वभाव के कलाकारों का डेरा, दाऊ जी की बघेरा स्थित कोठी में हुआ करता था। 

63 कलाकारों को एक साथ अपनी कोठी में ठहराना, उनके खाने-पीने, स्वल्पाहार की व्यवस्था, उनके रुकने-सोने की व्यवस्था करना अत्यंत ही दुष्कर कार्य था किंतु अपने पतिदेव के स्वप्न को पूर्ण करने के लिए राधा देवी जी उनके साथ अंतिम साँस तक कदम से कदम मिला कर चलती रहीं और इस दुष्कर कार्य को सुगम बनाती रहीं।  समस्त कलाकारों के रुकने, सोने,ओढ़ने-बिछाने की व्यवस्था से लेकर उनके भोजन की भी व्यवस्था का दायित्व वे हँसते-हँसते वहन करती रहीं। सारे कलाकार उनके लिए पुत्रवत थे। प्रत्येक कलाकार का ध्यान वे उसी तरह रखती थीं जिस तरह कोई माँ अपने बच्चों का रखती है। 

कलाकारों के लिए बनने वाला स्वल्पाहार और भोजन भी कामचलाऊ नहीं बल्कि स्वादिष्ट और पौष्टिक होता था। रिहर्सल के दौरान न जाने कितनी बार चाय का दौर भी चलता था। रसोई में वे स्वयं ही इतने लोगों का भोजन बना लेती थीं। सहयोग के लिए जरूर कुछ सेविकाएँ साथ में रहती थीं किन्तु महती भूमिका राधा देवी जी की ही होती थी। 

मेरी बड़ी बहन मंजुला भी चंदैनी गोंदा के 63 कलाकारों में शामिल थी अतः मैं रोज उसे लेकर बघेरा जाता था। इसी कारण मुझे चंदैनी गोंदा की रिहर्सल देखने का न केवल सौभाग्य प्राप्त है बल्कि प्रत्येक कलाकार से भलीभाँति परिचय करने का भी सुअवसर प्राप्त हुआ। उस समय मेरी उम्र मात्र सोलह वर्ष की थी। चंदैनी गोंदा के सभी कलाकार मुझे बेहद प्यार देते थे। समस्त कलाकारों में नम्रता थी। वहाँ बड़ों को सम्मान और छोटों को प्यार मिलता था। हम सब दाऊ जी को "दादा जी" कहकर संबोधित करते थे और उनकी धर्मपत्नी को "दादी जी"। 

उस दौर में संगीता चौबे जी की बिटिया, मैं, कविता (वासनिक), साधना (यादव), अनुराग (ठाकुर) बहुत कम उम्र के थे। सभी लोगों का खाना बन कर तैयार होने से पहले ही "दादी जी" हमें चुपके से बुलाकर अपने रसोई घर में ले आती थीं। रसोई घर के ठीक सामने एक कमरा था। उस कमरे के बाद एक बड़ा सा हालनुमा कमरा था। "दादी जी" वहीं हमें बिठा कर भोजन करवा देती थीं। बीच-बीच में मछली भी बना करती थी। कलाकारों में कुछ कलाकार शाकाहारी थे, अतः मछली को अलग से ही पकाया जाता था। हमें दादी जी अलग से ही अपने सामने बिठाकर मछली की सब्जी और दाल-भात खिलाया करती थीं। प्रसंग आया तो यह भी बताता चलूँ कि दाऊ रामचंद्र देशमुख जी स्वयं "मोंगरी-मछली" के बेहद शौकीन थे। 

"दादी जी", चंदैनी गोंदा के प्रत्येक प्रदर्शन में अवश्य ही जाती थीं किन्तु न तो कभी दर्शक-दीर्घा की प्रथम पंक्ति में बैठ कर कार्यक्रम का आनंद लेती थीं और न ही कभी मंच पर चढ़ती थीं। वे हमेशा महिला कलाकारों के ग्रीन-रूम में रह कर उनकी देख-रेख किया करती थीं। 

आज से 40 वर्ष पूर्व 02 अक्टूबर 1980 को दाऊ रामचंद्र देशमुख जी की धर्मपत्नी श्रीमती राधा देवी ब्रह्मलीन हो गईं। उस उम्र में जीवन संगिनी का साथ छूट जाना दाऊ जी के लिए बहुत बड़ा आघात था किंतु उन्होंने अपने अंतर्मन की व्यथा को प्रकट नहीं होने दिया और अपनी आँखों के आँसुओं को पी गए। दाऊ जी को यह चिंता होने लगी थी कि दादी जी के नहीं रहने से अब कलाकारों की व्यवस्था और देख-रेख कैसे हो पाएगी।

1980 में चंदैनी गोंदा की स्थापना को दस वर्ष पूर्ण हो चुके थे। छत्तीसगढ़ में सांस्कृतिक चेतना आ चुकी थी। छत्तीसगढ़ी भाषा परिष्कृत हो चुकी थी। लोगों में स्वाभिमान जाग चुका था। छोटे-छोटे कलाकारों की भी अपनी पहचान बन चुकी थी। हिन्दी के कवियों ने भी छत्तीसगढ़ी में गीत लिखना शुरू कर दिया था। लोक मंचों का लोक-स्वाद सँवर चुका था। कुल मिला कर चंदैनी-गोंदा का उद्देश्य पूर्ण हो चुका था। 

जीवन संगिनी के बिछड़ने के साथ ही चंदैनी गोंदा के विसर्जन की भूमिका दाऊ जी के मन में तैयार हो गई थी। दादी जी की प्रथम पुण्यतिथि अर्थात् 02 अक्टूबर 1981 को दाऊ जी ने चंदैनी गोंदा के संचालन का दायित्व संगीतकार खुमान लाल जी को सौंप दिया। अब चंदैनी गोंदा अनुराग धारा, मिनी चंदैनी गोंदा के रूप में प्रदर्शित होने लगा था। 

विसर्जन के संबंध में एक साक्षात्कार के दौरान दाऊ जी के शब्द थे - "चंदैनी गोंदा का विराट स्वरूप समाप्त हो चुका था अंतिम 2 वर्षों में अनुराग धारा के रूप में मिनी-चंदैनी गोंदा की शुरुआत की गई और उसके संचालन का दायित्व चंदैनी गोंदा के संगीतकार खुमान साव को सौंपा गया। थोड़े ही समय बाद इस कार्यक्रम में गिरावट की शिकायतें स्वयं कलाकारों की ओर से आने लगी तो इसे बंद करना पड़ा"। 

इस प्रकार दाऊ रामचंद्र देशमुख जी ने दिनांक 22 फरवरी 1983 को ग्राम पथरी में 99 वें प्रदर्शन के दौरान चंदैनी गोंदा को विसर्जित करने की अधिकृत घोषणा कर दी। चंदैनी गोंदा के विसर्जन के उपरान्त दाऊ जी "कारी" की तैयारी में जुट गए। चंदैनी गोंदा की तुलना में "कारी" में कलाकारों की संख्या सीमित थी अतः कलाकारों की व्यवस्था करना काफी सुगम हो गया था। 

आज 02 अक्टूबर को कलाकारों की दादी जी अर्थात् दाऊ राम चन्द्र देशमुख जी की जीवन संगिनी श्रीमती राधा देवी जी की 40 वीं पुण्यतिथि पर उन्हें स्मरण करते हुए अपनी श्रद्धांजलि समर्पित करता हूँ। 

आलेख - अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग छत्तीसगढ़


 

Wednesday, January 7, 2015


सिरतोन दाई, मयँ नइ लेवना खायेंव 

मयँ भोला-सिधवा लइका हौं ,नवा-साल बर आयेंव

पहिला नवा-साल हे कहिके
केक, बबा हर लाइस
ये करतूत हे बिट्टू कका के
मोला केक खवाइस

मयँ, ददा तीर गोहरायेंव 
सिरतोन दाई, मयँ नइ लेवना खायेंव

डोकरी-दाई उहाँ रहिस हे
पूछ ले तयँ महतारी
ये चेहरा-आँखी ला पढ़, ये
बोलयँ नहीं लबारी 

कन्झा के केक छरियायेंव
सिरतोन दाई, मयँ नइ लेवना खायेंव

अरुण निगम 

Thursday, January 1, 2015

चिटिक अगोरव.....



अँगरेजी के नवा साल बर, अतिक मया जी
कोन डहर ले  आइस , अइसन परंपरा जी  

डीजे – फीजे , नाचा – वाचा , दारू - सारू
लइका त लइका , झूमत हें  कका-बबा जी
 
उपभोक्तावादी  मन  के  तो ,  चाँदी  होगे
सेंकय रोटी , आघू  देखय , गरम तवा जी 

चैत महीना , उल्ह्वा - उल्ह्वा  डारा – पाना
चिटिक अगोरव आही असली साल नवा जी 

   
-          अरुण निगम

[हिन्दी भावार्थ - 
अंग्रेजी के नये साल के लिये इतना प्रेम !!!! किस ओर से ऐसी परम्परा आई ?
 डीजे, डांस, शराब....युवा तो युवा चाचा और दादा भी झूम रहे हैं.
 उपभोक्तावादियों की तो मानों चाँदी हो गई, सामने गर्म तवा देख रोटी सेंक रहे हैं .
चैत्र मास में नई-नई कोंपलें, डालियाँ और पत्ते, थोड़ी प्रतीक्षा करें, वास्तविक नव-वर्ष आ रहा  है. ]

Sunday, December 21, 2014

दोहे –



दोहे – 

मयँ बासी हौं भात के, तयँ मैदा के पाव
मयँ गुनकारी हौं तभो, तोला मिलथे भाव |  

मयँ सेवैया-खीर हौं, तयँ नूडल- चउमीन
मयँ बनथौं परसाद रे, तोला खावयँ छीन |

मयँ चीला देहात के, मयँ भर देथवँ पेट
तयँ तो खाली चाखना, अंडा के अमलेट |

मयँ अंगाकर मस्त हौं, तयँ पिज्जा अनमोल
अंदर बाहिर एक मयँ, तयँ पहिरे हस खोल |

अरुण  कुमार निगम

Thursday, October 2, 2014

स्वच्छ भारत अभियान ...



अरुण कुमार निगम

सहर  गाँव मैदान – ला, चमचम  ले  चमकाव
गाँधी जी के सीख – ला , भइया  सब अपनाव ||

लख-लख ले अँगना दिखय, चम-चम तीर-तखार
धरव   खराटा   बाहरी , आवव   झारा - झार ||

भारत भर - मा चलत हवय, सफई के अभियान
जुरमिल करबो साफ हम , गली  खोर खलिहान ||
 
आफिस  रद्दा  कोलकी  ,  घर  दुकान  मैदान
रहयं साफ़ – सुथरा सदा, सफल होय अभियान ||

साफ़ - सफाई  धरम  हे , एमा  कइसन लाज
रहय देस - मा स्वच्छता, सुग्घर स्वस्थ समाज
 

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग [छत्तीसगढ़]

Sunday, November 17, 2013

चलव चलव मतदान करे बर

अरुण कुमार निगम

चलव चलव मतदान करे बर
अपन भाग निरमान करे बर

चमक-धमक के बीच मा संगी   
हीरा के पहिचान करे बर
चलव चलव मतदान करे बर

साभिमान ला अपन जगावव  
संविधान के मान करे बर
चलव चलव मतदान करे बर

अपन गाँव के धुर्रा-माटी,
पथरा, सोनाखान करे बर
चलव चलव मतदान करे बर

छत्तीसगढ़ के नाव ला भइया
भरे कटोरा धान करे बर
चलव चलव मतदान करे बर

अरुण कुमार निगम

आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)

Monday, November 12, 2012

शुभ देवारी - अरुण कुमार निगम


शुभम करोति कल्याणम आरोग्यगुणम संपदाम

1.
अँधियारी हारय सदा , राज करय उजियार
देवारी  मा तयँ दिया, मया-पिरित के बार ||

2.
नान नान नोनी मनन, तरि नरि नाना गायँ
सुआ-गीत मा नाच के, सबके मन हरसायँ ||


3.
जुगुर-बुगुर दियना जरिस,सुटुर-सुटुर दिन रेंग
जग्गू घर-मा फड़ जमिस, आज जुआ के नेंग ||


अरुण कुमार निगम


(देवारी=दीवाली,तयँ=तुम,पिरित=प्रीत,नान नान=छोटी छोटी,नोनी=लड़कियाँ, “तरि नरि नाना”- छत्तीसगढ़ी के पारम्परिक सुआ गीत की प्रमुख पंक्तियाँ, जुगुर-बुगुर=जगमग जगमग,दियना=दिया/दीपक,जरिस=जले,     सुटुर-सुटुर=जाने की एक अदा,दिन रेंग=चल दिए,फड़ जमिस=जुआ खेलने के लिए बैठक लगना,नेंग=रिवाज)

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