Tuesday, November 1, 2011

श्रीमती सपना निगम

                    “ छत्तीसगढ़ –  स्थापना दिवस के राज्योत्सव मेला”                       

                                                                      
                      अंधा लंगड़ा बड़े मितानी                       
सुने हो हौ तुम कहानी
कहूँ जनम के दुनो संगवारी
हो है लाग मानी
भीख मांग के करे गुजारा
उमन दुनो परानी
इक दूसर संग मेला घूमत
काट दईंन जिनगानी
लंगड़ा के रहे नाम बंशी
अँधा के गंगा राम
धरम धाम के नाम ला लेके
कर आइन चारों धाम
राजिम जाके राजीव लोचन
कर आइन परनाम
रायपुर तीर मा डारिन डेरा
करन लगिन अराम
वही बखत राज्योत्सव मेला के
चले रहे बड़ नाम
मेला घूमे के सउक मा
बंशी के होगे नींद हराम
लंगड़ा कहे राज्योत्सव मेला
चल तोला देखातेंव
आनी बानी के खई ख़जेना
चल तोला खवातेंव
किसम किसम के गाना बजाना
चल तोला सुनातेंव
झूमा झटकी के नाचा गाना
चल तोला नचवातेंव
चकरी झुलना हवाई झुलना
चल तोला झुलातेंव
लईका मन के छुक छुक रेल मा
चल तोला बैठातेंव
अइसन कस राज्योत्सव मेला
कभू नहीं जा पाएँन
अभी कहूँ तोर संग मिल जाहे
चल ओला भी देख आयेन
अँधा कहे मैं देखिहौं का
मैं दुनों आखी के अँधा
यिहें आके बिसरागेहों मैं
भीख मांगे के मोर धंधा
चल आजा बइठ जा मोर खान्द मा
मोर नरी के फंदा
बड़े फज़र ले मैं उठ जाथौं
तैं रहिथस उसनिन्दा
छत्तीसगढ़ महतारी के
रखले मर्यादा जिंदा
भीख मांगे मा हो जाही
धनही दाई शर्मिंदा
जीयत मनखे के बोझा ला ढोवत
खान्द हा मोर पीरा गे
अऊ कतेक ले किन्जरबे तैंहा
जांगर मोर सिरागे
हमर असन निःशक्त जन के
सरकार ला सुधि आ गे
अपन पांव मा हो जा खड़ा तैं
साभिमान जगा गे

श्रीमती सपना निगम
आदित्य नगर , दुर्ग
                                  छत्तीसगढ़
(शब्दार्थ : उमन दुनो परानी= वे दोनों प्राणी,  सउक मा=शौक में, आनी बानी के खई ख़जेना
=विविध तरह का खाना-खजाना,  यिहें आके बिसरागेहों=यहाँ आकर भूल गया,                बइठ जा मोर खान्द मा= बैठ जा मेरे कंधे पर, मोर नरी के फंदा= मेरे गले पड़ी मुसीबत, फज़र=सुबह,  उसनिंदा=अर्धनिद्रा में, धनही दाई= धान से परिपूर्ण माता,                       अऊ कतेक ले किन्जरबे तैंहा
      =और कितना तुम सैर करोगे, जांगर मोर सिरागे=शरीर शक्तिहीन हो चला)



Pages

Followers