ममा ! कका ! कोन्हों नहीं जाने
दीदी ! भाँटो !कोन्हों नहीं माने
भुलागे हे सब संगी ! मितान !
अंग्रेज मन बन गे हे महान
हमर देस के नहीं हे पहिचान
रिश्ता - नाता के छूटे परान .
जउन कहूँ बोलय अंकल -आंटी !
बाँधव ओखर गला - मा घंटी
बइला कस हकालौ ओला
मारव ओला सूंटी च सूंटी
मारव ओला सूंटी च सूंटी
अउ बोलबे रे ! मोला आंटी.
कोन्हों ला देखे बोलय आंटी
कोन्हों ला कहिदे अंकल
जेल पाय तेला कहय
अंकल -आंटी , आंटी-अंकल !
जौन कहूँ बोलही तुम्हला अंकल
बाँधीहौ उन्कर नरी - मा संकल.
बेंदरा कस घुमावौ ओला
इहाँ - उहाँ नचावौ ओला
सोचो बिचारौ तुम सब आज
ये हमर देस के नोहै रिवाज
दूसर के देखा - देखी - मा
बदलौ झन तुम अपन अंदाज
पागे हौ तुम अपन सुराज
अपन संस्कृति के राखव लाज.
-श्रीमती सपना निगम
आदित्य नगर , दुर्ग
छत्तीसगढ़
दीदी ! भाँटो !कोन्हों नहीं माने
भुलागे हे सब संगी ! मितान !
अंग्रेज मन बन गे हे महान
हमर देस के नहीं हे पहिचान
रिश्ता - नाता के छूटे परान .
जउन कहूँ बोलय अंकल -आंटी !
बाँधव ओखर गला - मा घंटी
बइला कस हकालौ ओला
मारव ओला सूंटी च सूंटी
मारव ओला सूंटी च सूंटी
अउ बोलबे रे ! मोला आंटी.
कोन्हों ला देखे बोलय आंटी
कोन्हों ला कहिदे अंकल
जेल पाय तेला कहय
अंकल -आंटी , आंटी-अंकल !
जौन कहूँ बोलही तुम्हला अंकल
बाँधीहौ उन्कर नरी - मा संकल.
बेंदरा कस घुमावौ ओला
इहाँ - उहाँ नचावौ ओला
सोचो बिचारौ तुम सब आज
ये हमर देस के नोहै रिवाज
दूसर के देखा - देखी - मा
बदलौ झन तुम अपन अंदाज
पागे हौ तुम अपन सुराज
अपन संस्कृति के राखव लाज.
-श्रीमती सपना निगम
आदित्य नगर , दुर्ग
छत्तीसगढ़
सपना जी को मेरा सस्नेह अभिवादन....
ReplyDeleteदूसर के देखा - देखी - मा
बदलौ झन तुम अपन अंदाज
पागे हौ तुम अपन सुराज
अपन संस्कृति के राखव लाज.
बहुत ही प्रेरणा दायक । सकारात्मक , अच्छी प्रस्तुति।
हार्दिक शुभकामनायें ! एवं साधुवाद !
बहुत अच्छे तरीके का व्यंग है| कविता अपनी संस्कृति को लेकर क्रान्तिकारी विचारों वाली है|मै आपकी भावनाओं का समर्थन करता हूँ|
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