Thursday, September 29, 2011

ओ दाई ......

( नवरात परब मा माता सेवा : भाग - 1 )

मूड़ मुकुट- मोती मढ़े
, मुख मोहक - मुस्कान
नगन नथनिया नाक मा
, कंचन - कुंडल कान       ओ   दाई ......

मुख
  -मंडल चमके -दमके,धूम्र विलोचन नैन
सगरे जग बगराये मा
,   सुख -संपत्ति, सुख-चैन       ओ   दाई ......

लाल चुनर
,लुगरा लाली,लख-लख नौलख  हार
लाल चूरी
,लाल टिकुली,      सोहे सोला सिंगार          ओ   दाई ......

करधन सोहे कमर मा
,   सोहे पैरी पाँव
तोर अंचरा दे जगत ला ,सुख के सीतल छाँव        ओ   दाई ......

कजरा सोहे नैन मा
,मेहंदी सोहे हाथ
माहुर सोहे पाँव मा
,बिंदी सोहे माथ                          ओ   दाई.......

एक हाथ मा संख हे
,एक कमल के फूल
एक हाथ तलवार हे
,एक  हाथ तिरसूल                       ओ   दाई ......

एक हाथ मा गदा धरे
,एक मा तीर -कमान
एक हाथ मा चक्र हे
,       एक हाथ वरदान                 ओ   दाई ......

अष्टभुजा मातेश्वरी
,        महिमा अपरम्पार
तीनों लोक तोर नाम के
, होवै जय जयकार               ओ   दाई ......


)शब्दार्थ :- ओ   दाई = ओ मईया या हे माँ,  मूड़ = सिर, सगरे जग बगराये = सारे जग में फैलाना, चूरी = चूड़ी, टिकुली = माथे का टीका या बिंदी, सोहे = शोभित होना, सोला = सोलह, अँचरा = आँचल)


अरुण कुमार निगम

आदित्य नगर, दुर्ग

छत्तीसगढ़

3 comments:

  1. बहुत ख़ूबसूरत ! शानदार प्रस्तुती!
    आपको एवं आपके परिवार को नवरात्रि पर्व की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें !

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  2. अष्टभुजा मातेश्वरी , महिमा अपरम्पार ।
    तीनों लोक तोर नाम के, होवै जय जयकार ।।

    सपरिवार आप पर माँ दुर्गा की असीम कृपा सदैव बनी रहे....हार्दिक शुभ कामनाएं.

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  3. हमारे घर के नजदीक ही ‘माता देवाला‘ है। शाम से देर रात तक बस्ती के लोग माता सेवा गाते रहते हैं। इसकी धुन और रिदम में जादू है।
    इस सुंदर प्रस्तुति के लिए बधाई।
    नवरात्रि की शुभकामनाएं।

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