चार बजे उठ जावे ओहा
सरी गाव ला सोरियावे ओहा
माता देवाला के लीम ला चढ़ के
कूकरुसकू नरियावे ओहा
सरी गाव ला सोरियावे ओहा
माता देवाला के लीम ला चढ़ के
कूकरुसकू नरियावे ओहा
गुरतुर ओखर बोली लागे
गजब चटपटा मसाला हे
मोर कुकरा कलगी वाला हे ....
गजब चटपटा मसाला हे
मोर कुकरा कलगी वाला हे ....
मोर कुकरा रेंगे मस्ती मा
यही चाल ओखर अंदाजा हे
बस्ती के गली गली किंजरे
सब कुकरी मन के राजा हे
यही चाल ओखर अंदाजा हे
बस्ती के गली गली किंजरे
सब कुकरी मन के राजा हे
दिल फेंक बड़े दिलवाला हे
मतवाला हे मधुशाला हे
मोर कुकरा कलगी वाला हे ....
मतवाला हे मधुशाला हे
मोर कुकरा कलगी वाला हे ....
ओखर, काँखी मा चितरी पाँखी हे
पंजा मा धारी नाखी हे
पियुरी चोंच हे , ठोनके बर
अऊ जुगुर जुगुर दोनों आँखी हे
पंजा मा धारी नाखी हे
पियुरी चोंच हे , ठोनके बर
अऊ जुगुर जुगुर दोनों आँखी हे
ओखर, झबरी पूँछी मा हाला हे
नड्डा मा झूलत बाला हे
मोर कुकरा कलगी वाला हे ....
दुनिया में सबले निराला हे ...
नड्डा मा झूलत बाला हे
मोर कुकरा कलगी वाला हे ....
दुनिया में सबले निराला हे ...
आदित्य नगर ,दुर्ग ( छत्तीसगढ़ )
{शब्दार्थ :- मोर=मेरा , कुकरा = मुर्गा ,ओहा = वह , सरी = सारे ,सोरियावे = शोर मचाए , नरियावे = चिल्लाये ,गुरतुर = मधुर या मीठा , ओखर = उसका/उसकी ,किंजरे = भ्रमण करे , कुकरी मनके = मुर्गियों का ,काँखी = बगल , आँखी = आँख ,पाँखी = पंख ,नाखी = नाखून ,चितरी = चितकबरी , पियुरी = पीली, ठोनके बर = ठुनकने के लिये }
मनमोहक रचना ........ बहुत सुंदर चित्रण किया आपने....
ReplyDeleteबहुत ख़ूबसूरत और शानदार रचना! बेहद पसंद आया!
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
मोर कुकरा कलगी वाला हे ....
ReplyDeleteदुनिया में सबले निराला हे ....
बहुत सुन्दर कविता है। छत्तीसगढ़ी भाषा में पढना और अच्छा लगा।
.
बहुत ख़ूबसूरत और शानदार रचना| धन्यवाद|
ReplyDeleteचार बजे उठ जावे ओहा
ReplyDeleteसरी गाव ला सोरियावे ओहा
क्या कहने!
सुन्दर कविता है.
दुनियाँ में सबले निराला हे ....
ReplyDeleteमोर कुकरा कलगी वाला हे
बहुत ख़ूबसूरत और शानदार रचना.
बड़ी मनमोहक कविता है ....मिठास भरी
ReplyDelete"कुकरा कलगी वाला हे"
ReplyDeleteअति सुंदर
"कुकरा कलगी वाला हे"-मिठास भरी कविता धन्यवाद|
ReplyDeleteलोकरंग में रचाबसा ख़ूबसूरत गीत....
ReplyDeleteekk achhi comment likhne k liye bahut bahut dhanyavad..
ReplyDeleteक्षेत्रीय भाषा में बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति .
ReplyDeleteलोकगीत भी निराला है. बधाई.
ReplyDeleteओखर, झबरी पूँछी मा हाला हे
ReplyDeleteनड्डा मा झूलत बाला हे
मोर कुकरा कलगी वाला हे
दुनिया में सबले निराला हे ...
सुन्दर रचना....
मनमोहक रचना ........ बहुत सुंदर चित्रण किया आपने....
ReplyDeleteसुन्दर रचना पढ़वाने के लिए आभार
ReplyDeleteमेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत है! मेरा ब्लॉग का लिंक्स दे रहा हूं!
ReplyDeleteहेल्लो दोस्तों आगामी..
ohaaa
ReplyDeletemaja ga gaya geet gakar,,,
दुनियाँ में सबले निराला हे ....
ReplyDeleteमोर कुकरा कलगी वाला हे ..
kya sunder bhav naya vishya hai
rachana
सपना जी, कभी छत्तीसगढ़िया भाषा नहीं सुनी थी. आप ने शब्दों के अर्थों की सूची साथ में दे कर बहुत बढ़िया काम किया है. लोकगीत भी बहुत सुन्दर है.
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