Wednesday, August 15, 2012

जय हिंद के गीत सुनावत हें


सब सूतत हें उन जागत हें, 
जाड़ - घाम मा मुचमुचावत हें
तज दाई ददा भईया भउजी, 
जाके जंग मा जान गँवावत हें
कोनों किसिम के बिपदा के घड़ी, 
कोनों गाँव गली कभू आवत हे
नदिया – नरवा, डबरी - डोंगरी , 
कर पार उहाँ अगुवावत हें.

बम, बारुद, बंदूक संग खेलैं  , 
बइरी दुस्मन ला खेदारत हें
बीर जंग मा खेलैं होरी असली,
देखौ लाल लहू मा नहावत हें
गोली छाती मा झेलत हें हँसके, 
दूध के करजा ला चुकावत हें
मोर बीर बहादुर भारत के  , 
जय हिंद के गीत सुनावत हें

(शब्दार्थ : सूतत = सो रहे , उन = वे , जागत = जाग रहे , जाड़ घाम = ठंड धूप , मुचमुचावत हें = मंद मंद मुस्कुरा रहे हैं , दाई ददा = माता पिता, कोनों किसिम के = किसी प्रकार की ,नरवा = नाला , डोंगरी = पहाड़ी , उहाँ = वहाँ , अगुवावत = आगे आना ,बइरी = बैरी ,खेदारत = भगाना )
 
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर, जबलपुर (म.प्र.)


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