अँगरेजी के नवा साल बर, अतिक मया जी
कोन डहर ले आइस , अइसन
परंपरा जी
डीजे – फीजे , नाचा – वाचा , दारू - सारू
लइका त लइका , झूमत हें कका-बबा
जी
उपभोक्तावादी मन के तो
, चाँदी
होगे
सेंकय रोटी , आघू देखय ,
गरम तवा जी
चैत महीना , उल्ह्वा - उल्ह्वा
डारा – पाना
चिटिक अगोरव आही असली साल नवा जी
-
अरुण निगम
[हिन्दी भावार्थ -
अंग्रेजी के नये साल के लिये इतना प्रेम !!!! किस ओर से ऐसी परम्परा आई ?
डीजे, डांस, शराब....युवा तो युवा चाचा और दादा भी झूम रहे हैं.
उपभोक्तावादियों की तो मानों चाँदी हो गई, सामने गर्म तवा देख रोटी सेंक रहे हैं .
चैत्र मास में नई-नई कोंपलें, डालियाँ और पत्ते, थोड़ी प्रतीक्षा करें, वास्तविक नव-वर्ष आ रहा है. ]
[हिन्दी भावार्थ -
अंग्रेजी के नये साल के लिये इतना प्रेम !!!! किस ओर से ऐसी परम्परा आई ?
डीजे, डांस, शराब....युवा तो युवा चाचा और दादा भी झूम रहे हैं.
उपभोक्तावादियों की तो मानों चाँदी हो गई, सामने गर्म तवा देख रोटी सेंक रहे हैं .
चैत्र मास में नई-नई कोंपलें, डालियाँ और पत्ते, थोड़ी प्रतीक्षा करें, वास्तविक नव-वर्ष आ रहा है. ]
सार्थक प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (03-01-2015) को "नया साल कुछ नये सवाल" (चर्चा-1847) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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नव वर्ष-2015 आपके जीवन में
ढेर सारी खुशियों के लेकर आये
इसी कामना के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
करारा चोट गुरुवर
ReplyDeleteकरारा चोट गुरुवर
ReplyDeleteकरारा चोट गुरुवर
ReplyDeleteकरारा चोट गुरुवर
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ब्यंग गुरूदेव...मन ल छुगे
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