Thursday, August 11, 2011

दारू-बंदी (छत्तीसगढ़ी-हास्य)

-सपना अरुण  निगम

कोटवार हर हाका पारिस,
" होगे दारू-बंदी "
तउने दिन ले पीना छोड़ीस
ममा हमर मुकुन्दी.

अपन सुधरगे, मन्दू-संगी

मन ला घलो सुधारिस
हमर गाँव मा अब नइ रहिगे
मनखे लंदी-फंदी.......................

पी के आवै,रोज ठठावै

तउने आज सुधरगे
मनटोरा मामी खुस हो के
बाँटीस लाडू -बूंदी ........................

भगतू भैया ,भामा भौजी

रोज मतावय झगरा
छूटिस पीना,दुन्नो झन मा
होगिस रजामंदी..........................

नत्थू के नाती नंदू जेन

पी के करय हंगामा
मरखंडा गोल्लर ले बनगे
सिधावा बइला नंदी .......................

बोतल संग चाखना लेके

आवत रहिस सुदामा
संझाकुन अब ले के आथय
केरा अउ मुसम्बी.............................

मया-मतौना मा मंगली के   

मंगलू हर बईहागे
मंगली के आगू -पाछू मा
बन के उड़े फुरफुन्दी .........................

अब ले जउन निसा मा दिखही

दाँड़ भुगतना परिही
सरी गाँव वाला मन ओखर
छाँट दिही सब चूंदी...............................

हमर गाँव के मनखे जइसन

कहूँ सुधर सब जातिन
घर-घर मा खुसहाली आतिस
दुरिहा भागतिस तंगी.............................

शब्दार्थ - हाकापारिस  = मुनादीसुनाई  ,तउने = उसी, मन्दू = शराबी , घलो =भी ,ठठावै = पीटना , मतावय =मचाना ,मरखंडा गोल्लर =मारने वाला सांड ,केरा = केला ,बईहागे   ,फुर फुन्दी = भ्रमर चूंदी = केश )

15 comments:

  1. बहुत सुंदर सकारात्मक सोच लिए रचना......

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  2. अपरिचित शब्दों के अर्थ आप ने दिए,कविता को समझने में आसानी हुई.
    अच्छी लगी कविता.

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  3. दारू-बंदी पर बहुत अच्छी कविता....

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  4. भगतू भैया ,भामा भौजी
    रोज मतावय झगरा
    छूटिस पीना,दुन्नो झन मा
    होगिस रजामंदी......

    रजामंदी पर बधाई.
    सार्थक रचना....

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  5. "हमर गाँव के मनखे जइसन
    कहूँ सुधर सब जातिन
    घर-घर मा खुसहाली आतिस
    दुरिहा भागतिस तंगी........."

    प्रेरक प्रस्तुति - बहुत सुंदर

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  6. सुन्दर अभिव्यक्ति के साथ भावपूर्ण कविता लिखा है आपने! शानदार प्रस्तुती!
    आपको एवं आपके परिवार को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें!
    मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
    http://seawave-babli.blogspot.com/
    http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/

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  7. बने गाना बनाए हस दाउ । अब्बड़ नीक लागिस जी।

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  8. छत्तीसगढ़ी 'हरिगीतिका' !!!
    गुदगुदा के बड सुग्घर संदेस देवत हवे आपके गीत हर....
    बधई...

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  9. तुम्हर गाँव के मनखे जइसन ,
    कहूँ सब्बो सुधर जातिन ;
    बैरी घलो मितान बन जातिस ,
    रोज करतिस तुकबंदी ;

    आपने बहुत ही सुन्दर ,भावपूर्ण व प्रेरणादायी गीत लिखा है , आगे भी आप इसी तरह समाज सुधार के कार्य में लगें रहें ; शुभकामनाएं .
    तीजा,ईद एवं गणेश चतुर्थी की हार्दिक बधाई .

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  10. अच्छा है अच्छा है

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  11. अच्छा है अच्छा है

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  12. बहुत बढिया है

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  13. लिखित साहित्य ला हमेशा सकारात्मक होना चाही!
    जे लोक कल्याणी होय वोही साहित्य आय!
    धन्यवाद ये रचना खातिर !

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