"अरुण कुमार निगम"
मुनु बिलाई रे मुनु बिलाई
तयँ बघुवा के मौसी दाई.
कुकुर देख के थर थर काँपे
ठउँका दउँड़त प्रान बचाई.
मुनु बिलाई रे मुनु बिलाई……………….
नान नान तोर पीला दू
किंजरें तोर पाछू-पाछू
उतलंगी बड़ करत हवयँ
मुड़ी कान ला धरत हवयँ.
रोज-रोज मोर रँधनी मा आके
चोरा के खावयँ दूध-मलाई.
मुनु बिलाई रे मुनु बिलाई..................
धान के कोठी के खाल्हे
मुसुवा मन बैठे ठाले
खइता अन के करत हवयँ
अपन पेट ला भरत हवयँ.
मुसुवा ला तुक तुक के मारे
तयँ किसान के करे भलाई.
मुनु बिलाई रे मुनु बिलाई................
म्याऊँ म्याऊँ गुरतुर बोली
किंदरत हस खोली खोली
देख तोला भागय मुसुवा
चाल ढाल मा तयँ सिधवा.
कइसे गजब लफंगा होगे
तोर ये बनबिलवा भाई.
मुनु बिलाई रे मुनु बिलाई...........
सौ मुसुवा ला खाथस तयँ
हज करे बर जाथस तयँ
संसो मा मुसुवा आगै
कोन नरी घंटी बाँधै.
नान्हेंपन ले कहिनी सुन के
जानत हन हम तोर चतुराई.
मुनु बिलाई रे मुनु बिलाई...........
तोर रेंगई ऊपर मरगे
कतको टूरी मन तरगे
रिंगी चिंगी चेंदरी पहिन
बड़े-बड़े माडल बनगिन.
मटक मटक मोटियारिन करथें
कैट-वाक् मा खूब कमाई.
मुनु बिलाई रे मुनु बिलाई...........
(छत्तीसगढ़ में जब नन्हें मुन्नों को बिल्ली दिखाते हैं तब प्यार से बिल्ली को मुनु बिलाई कहते है.यह एक तरह का प्यार भरा सम्बोधन है.)
गीत का हिंदी में भावार्थ : अरी मुनु बिल्ली, तू शेर की मौसी माँ है, कुत्ते को देख काँपती है, दौड़-भाग कर अपने प्राण बचाती है.
तेरे नन्हें-नन्हें दो बच्चे तेरे पीछे-पीछे घूमते हुये शरारत करते हुये कभी एक दूसरे के मुँह को तो कभी कानों को पकड़ने की क्रीड़ा करते हैं. प्रतिदिन मेरी रसोई में आकर दूध-मलाई चुरा कर खाते हैं.
धान की कोठी के नीचे चूहे बैठे-ठाले अपना पेट भरते हैं किंतु अनाज का नाश भी करते हैं. तू चुन-चुन कर चूहों को मारकर किसानों की भलाई करती है.
म्याऊँ-म्याऊँ की तेरी बोली है, इस कमरे से उस कमरे तू आती-जाती है, तुझे देख चूहे भाग जाते हैं. चाल-ढाल में तू तो बड़ी सीधीसादी है किंतु तेरा भाई बन-बिलाव कैसे इतना लफंगा हो गया ?
मुहावरे में कहा जाता है- सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को चली, चूहे चिंता मग्न हैं कि बिल्ली के गले में घंटी कौन बाँधे ! बचपन से कहानियों में तेरी चतुराई के बारे में हम सुनते आ रहे हैं.
तेरी चाल पर फिदा होकर कितनी ही युवतियाँ तर गईं. चिंदी जैसे छोटे-छोटे परिधान पहन कर माडल कहलाने लगी हैं .” कैट-वाक “ करके ये खूब कमाई भी कर रही हैं.
Very Nice post our team like it thanks for sharing
ReplyDeleteमुनु बिलाई :) बड़ा सुंदर बाल गीत
ReplyDeleteमुनु बिलाई रे मुनु बिलाईतयँ बघुवा के मौसी दाई.कुकुर देख के थर थर काँपेठउँका दउँड़त प्रान बचाई.मुनु बिलाई रे मुनु बिलाई……
ReplyDeleteMe ha to lika bn genv
hahahaa bahut pyara hai
ReplyDeleteप्यारा गीत ..
ReplyDeletekalamdaan.blogspot.com
बहुत हि सुन्दर बाल कविता...
ReplyDeleteकविता के साथ अर्थ को देकर आपने कविता को समझा भी दिया|
एक साथ बालमन के मनोरंजन और आज कि आधुनिकता पर व्यंग भी
umda baal geet,bchpan ki yaad dila di
ReplyDeleteपहले बालगीत पढते वक़्त थोड़ी मेरी अज्ञानता आड़े आ रही थी कुछ कुछ समझ प रही थी किन्तु नीचे अर्थ देख कर फिर पढ़ा तो मज़ा आगया
ReplyDeleteshukriya .. is pyaare se baal geet aur uske arth ke liye ...
ReplyDeleteसुंदर बाल गीत. विवरण नीचे पढकर और मजा आया.
ReplyDeleteकइसे गजब लफंगा होगे
ReplyDeleteतोर ये बनबिलवा भाई.
मुनु बिलाई रे मुनु बिलाई.
लफंगा ने मन मोह लिया।
लफंगा का इससे बेहतर प्रयोग मैंनं नहीं देखा।
आदरणीय निगम सर
ReplyDeleteअब्बड़ सुग्घर रचना-
"मुनु बिलाई रे मुनु बिलाई"
बड़ नीक लागिस निगम भइया आप मन के ए रचना ल पढ़ के.. ..
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत कविता
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